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Sunday, 12 April 2020

भारत का गौरव
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वही भारत का गौरव है, उसी का मान करते हैं
उसी की प्रेरणा – शिक्षा,अनोखी शक्ति भरते हैं

वही बापू हमारा है,जिसे कहते हैं सब गांधी
उसी की कोशिशों से हम,खुले नभ में विचरते हैं

पहन धोती का इक चोला , दिलायी मुक्ति बंधन से
बहुत दुबली थी काया पर, विरोधी अब भी डरते हैं

अहिंसा-सत्य आभूषण था उस जीवट मनस्वी का
अमर आदर्शों पे उसकी, नयी बुनियाद धरते हैं

वो बातें मोतिहारी की या चंपारण की हों रातें
अथक उसकी थी मेहनत हम, अभी भी नाज करते हैं

हवा में उसकी ख़ुशबू है, गगन का चाँद जैसा वह
उसी से ले के ऊर्ज़ा हम,सफ़र जीवन का करते हैं
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देखो बापू आज क्या हो रहा है
हृदय अपना ज़ार – ज़ार रो रहा है ।
   विषमताओं की ऊँची है दीवार
   असंतोष जहाँ उभरता बार – बार
   आतंकवादियों का पसरता पाँव
   पकड़ा रहा है बंदूक़ गाँव – गाँव
सच भी अपनी आस्था खो रहा  है
विश्वास का हनन सतत हो रहा है ।
    क़दम चल पड़े हैं तारों को छूने
    आम जन महज़ हैं सपने ही बूने
    धर्म – सम्प्रदाय के बीच है खाई
    न राम न रहीम ने ही जगह पायी 
उपद्रवी बारूदी फ़सल बो रहा है
लाशों पर भी सियासत हो रहा है।
     चूर हुए बापू तुम्हारे अरमान
     भाग्योदय से पहले ही अवसान
     तुम्हें अवतरित फिर से होना होगा
     ठूँठी शाख़ों में जां भरना होगा
चहकेगा पाखी अभी सो रहा है
ऐसा हमें अंदेशा हो रहा है।
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प्रकृति पर्यावरण और जल
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प्रकृति प्रेम की अलख जलाना
भारतवासी भूल न जाना।
   नहीं करना प्रकृति का दोहन
   होता इससे ख़ुद का शोषण
   पेड़ झूम – झूम कर बुलाते
   नभ में तब हैं बादल छाते
नीर – सुधा से फ़सलें हँसती
कलकल करतीं नदियाँ बहतीं
ज्ञान बात सबको बतलाना
भारतवासी भूल न जाना।
    खोलना है गर कारख़ाना
    देखो विषाणु मत फैलाना
    ताल-तलैया मत करना दूषित
    हो जाती है हवा संक्रमित
रोको यह बढ़ती आबादी
करती यह अपनी बर्बादी
जन- जन को आभास कराना
भारतवासी भूल न जाना।
    जल संकट है भीषण भारी
    विश्व -युद्ध को करता जारी
    एक – एक बूँद है बचानी  
    यही चेतना होगी लानी
धरती देखो तपती जाती
सूखे का संकट यह लाती
एक काटो तरु,दस लगाना
भारतवासी भूल न जाना।
    तुम जागोगे,जग जागेगा
    तो बीमारी दूर भागेगा
    इक दिन ऐसा भी आएगा
    जीना आसां हो जाएगा
प्रकृति,पर्यावरण, जल संचय
रखना इनको है नित अक्षय
संकल्प ये करना – कराना
भारतवासी भूल न जाना।
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Friday, 10 April 2020

कविता – हम पहरुए इस देश के
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नीली छतरी के नीचे सजता धरती का चितवन
ऋतुओं की सौग़ातों से पलता मनहर ये उपवन ।
पाखी,दरया औ माटी हैं जीवन राग सुनाते
निर्मल तन में निर्मल मन की अनुशंसा करवाते ।
  हम बागवान इस बगिया की फूल न झरने देंगे
  हम पहरुए इस देश के,ध्वज कभी न झुकने देंगे ।
साँसों की सरगम रचते नित त्योहारों के मेले
जीवन की आपाधापी में हैं ख़ुशियों के रेले।
मिथ्या अभिमान का आवरण तजकर आँखें खोलो
इंसानों को इंसानियत की कसौटी पर तौलो ।
   अपरिमित ज्ञान अर्जन का संकल्प न टूटने देंगे   
   हम पहरुए इस देश के,ध्वज कभी न झुकने देंगे ।
अभिनव उत्कर्ष के सोपान पर चढ़ते जाएँगे
आँधी – वर्षा,धूप – खार में भी बढ़ते जाएँगे ।
भाई -  चारा और एकता का ये मिसाल होगा
महादेश में भारत अपना सुंदर विशाल होगा ।
   बाधाओं के आगे हिम्मत कभी न घटने देंगे
   हम पहरुए इस देश के,ध्वज कभी न झुकने देंगे ।
काल के करवट ने जब भी यहाँ विध्वंश रचाया
हमने इकजुट होकर दुश्मनों को बाहर भगाया।
अपनी शुचिता और ईमान के हम रखवाले हैं
दहशतगर्दी का निशां मिटा दें वो मतवाले हैं।
   बारूदों की फ़सलें वतन में कभी न उगने देंगे
  हम पहरुए इस देश के,ध्वज कभी न झुकने देंगे ।
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Monday, 10 October 2016

हे जगदम्बे महिषासुर मर्दिनी माँ 
उद्धार करो जग का हे तमहारिनी माँ। 
आतंक है छाया आततायी भष्मासूरों का 
संहार करो वहशियों का हे अष्टभुजंगिनी माँ। 
आह्वान करते हम आद्या ,लक्ष्मी और शारदे का 
शक्ति वैभव और विद्या दो हे वरदायिनी माँ।
मिलती नही कन्या ,रस्म छूटेगा कन्या पूजन का
पहना दो रक्षा कवच गर्भ से ही हे नारायणी माँ।
भयाक्रांत सभी ,मन अधीर देख पीर जग का
साहस संयम भर दो हममें हे कात्यायनी माँ।
होता नही अंत कभी हमारे दुःख - दारिद्रय का
पीयूष पावस में भीग जाएं अब,हे इन्द्राणी माँ।
मिटा दो रिवाज़ नारियों की अग्नि परीक्षा का
आ जाओ धरा पे ,हे विशय विनाशिनी माँ।
खुशियां हों अपार ,आँगन आनंद मंगल का
दे दो मूलमंत्र मानवता का ,हे ओंकारिणी माँ।
तोड़ भरम का मायाजाल,नाश होअंधप्रथाओं का
हर नारी में हो छवि तुम्हारी हे दुर्गेशनंदिनी माँ।....copyright kv
बना दो या बिगाड़ दो आशियाँ दिल का
हाथ में ये तेरे है ,नहीं काम कुदरत का।
तोड़ दो यह ख़ामोशी ,खफ़गी भी अब
सर ले लिया अपने, इल्ज़ाम मुहब्बत का।
जी करता है बिखर जाऊं खुशबू बन
तोड़ कर बंदिशें तेरी यादों के गिरफ्त का।
बज़्मे जहान में कोई और नहीं जंचता
कुर्बत में तेरे जवाब है हर तोहमत का।
उम्मीदों का दीया जलता है मुसलसल
कभी तो बरसेगा मेघ उसकी रहमत का।.

Monday, 20 June 2016

मेघ उतरता है
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पतझड़ सी नीरवता से जब
मन भर जाता है
मेघ उतरता है नैनों में
आसमान रीत जाता है।

वितथ जीवन का तथ्य
मैं अकिंचन क्या जानूं
दिन - रात की आपाधापी में
जीवन - संगीत जाता है।

आजमाती है ये दुनिया
बिखरा के कांटे पथ में
ये तो मेरा जज़्बा है जो
बन मीत जाता है।

जलाया है दहलीज पे
एक चराग तेरे नाम का
तम की गलियों से अब कौन
भयभीत जाता है।

हो आँखों के नीर तुम
दुःख में और सुख में भी
उर - वीणा के तार छेड़
लिखा प्रीत जाता है।

मिज़ाजे मौसम की मानिंद
बदलते हैं इंसां भी नित
संग दो पल की आरज़ू में
बरस बीत जाता है।

शज़र हूँ तेरे चमन की पर
चहकते नहीं परिंदे कभी
मन की दरीचों से पिघल
नहीं शीत जाता है।

दम्भ के छद्म घेरे में 
विचरते  प्रस्तर प्राण हैं 
साँसों की होड़ लगा कौन
ताउम्र जीत जाता है।

गहन कुहरा छाता है जब
दुःख संत्रास घूटन का
तुम्हारी यादों के आफ़ताब से

बन अतीत जाता है।