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Thursday, 7 November 2013

हे अंशुमाली
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युग आते,युग भरमाते
निरंतर होने का
होकर मिट जाने का ।
पीढ़ियों के उद्भव - अंत का
सभ्यताओं के उत्थान - पतन का
तुम एकमात्र गवाह हो।
मेघों के बनने  का
नदियों के बहने का
फसलों के पकने का
तुम एकमात्र आधार हो।
या यूँ कहें  कि
जीवन के फलने का
साँसों के चलने का
तुम एकमात्र पर्याय हो।
हे दिवसपति ,होते दीप्तमान जब
खिल उठते हैं सुमन मधुर
उड़ जाते पंछी सुदूर
छोड़ मर्त्यमान निशा का दामन
चहक जाते गाँव और कानन
घूमती रहेगी जब तक
धुरी पर पृथ्वी
तुम भी दिखोगे अनवरत
कभी इस पार
कभी उस पार
इधर गति का प्रणेता बनकर
उधर विश्राम का प्रतीक बनकर
हे अंशुमाली
सृष्टि का उद्गम  हो तुम
विनाश का मूल हो तुम
चराचर जगत के
तुम एकमात्र उपदेशक हो।  

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