मैं एक पेड़ होती
कभी - कभी लगता है
कितना अच्छा होता गर
कितना अच्छा होता गर
मैं एक पेड़ होती !
मेरी ठंडी घनी छाँव में
तुम थोड़ा सुस्ता लेते
जो होते श्रांत - क्लांत ।
देख तुम्हें खिल उठते
मेरे फूल से अंग -
प्रत्यंग
और गिर कर तुम्हारी राहों में
सुन्दर सेज सजा देते ।
मेरी शाखाओं में बैठे पंछी
मधुर स्वर में कलरव कर
तुम्हे मीठी नींद सुला देते
मेरी तना से सट कर
तुम्हारा खड़ा होना
वह स्पर्श सुख देता
जिसके अहसास से आजीवन
मैं झूमती - लहराती रहती
एक अनोखे उन्माद में ।
इक सपना भी संजोयी हूँ
कि जिस दिन गिर जाऊँ
भीषण आँधी की मार से
तुम मुझे माटी दे देना
तुम्हारा स्पर्श चिरनिद्रा में भी
तुम्हारा स्पर्श चिरनिद्रा में भी
अपेक्षित रहेगा।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18/07/2013 के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteकृपया पधारें
धन्यववाद
सुंदर भाव...
ReplyDeleteएक नजर इधर भी...
यही तोसंसार है...
बहुत सुंदर भाव हैं...
ReplyDeletedhanywaad
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