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Tuesday, 2 July 2013

जान नई भरते हैं

 जान नई भरते हैं 

मौसम की अंगड़ाई कुछ कहती है 
फिज़ाओं में तरन्नुम भरती है 
भूल कर अपनी खताओं को
 एक - दूजे का  हाथ थामते हैं  ।
बड़ी शिद्दत से सजाया है यादों को 
खट्टी - मीठी बातों और तकरारों को 
सुस्त पड़ी बेजान धडकनों में 
आओ जान नई भरते हैं । 
रात शबनमी बार - बार आती नहीं 
नूर की कशिश हर दम लुभाती नहीं 
धवल चांदनी का नेह निमंत्रण 
आओ मिल कर स्वीकारते हैं ।
कारवाँ ज़िन्दगी का चलता जाएगा
किस टीले पे जाने कब पड़ाव आएगा 
थोड़ा तुम चलो ,थोड़ा मैं चलूँ 
ख्वाब कोई नया बुन डालते हैं ।
जी रहे हैं हम इस तमन्ना में 
कभी तो रंग भरेंगे कोरे कागज़ में 
शमा इक जलती है उम्मीदों में 
जलने को परवाने मचलते हैं ।
सागर सी ख़ामोशी में हमारी 
छिपी है प्यार की गहराई तुम्हारी 
ढहती हुई रेत को समेट  कर 
चलो ,महल इक नया बनाते हैं ।

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना.....

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  2. रात शबनमी बार - बार आती नहीं
    नूर की कशिश हर दम लुभाती नहीं
    धवल चांदनी का नेह निमंत्रण
    आओ मिल कर स्वीकारते हैं ।..........bahut khoob,

    sunder rachna

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  3. बहुत सुंदर ...यही हौसला बना रहना चाहिए ।

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  4. वाह बहुत सुन्दर ...

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