स्वतंत्रता का मोल
स्वतंत्रता का सुख क्या होता है ?यह उससे पूछो जो वर्षों से काल - कोठरी में बंद है या फिर पिंजरे में बंद पक्षी जिसके पंख हैं पर परवाज़ नहीं । वर्षों से गुलामी की जंजीर में जकड़े भारत देश के लिए स्वतंत्रता उस उगते सूरज के समान थी जिसने कभी अस्त होना नहीं जाना ।आजादी के बाद का दौर अनेक समस्याओं से पूर्ण था लेकिन स्वतंत्रता का जोश उन सब के निवारण के लिए पर्याप्त था ।एक अखंड भारत का निर्माण जिसमे भाषा - भूषा ,और ऊँच - नीच के भेदभाव का कोई स्थान नहीं था। नेहरु ,गाँधी ,पटेल और अंबेडकर के साथ - साथ इनके समकक्ष दूसरे सेनानियों और नेताओं के प्रयास से स्वतंत्र भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न राष्ट्र में तब्दील हुआ ।संसार के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश की संरचना अद्वितीय तो थी ही ,अब उसकी राष्ट्रीय एकता भी दूसरों के लिए मिसाल बन गयी ।ईद - दीवाली ,हिन्दू - सिक्ख और चर्च - मंदिर में कोई अंतर नहीं ।यह मज़बूत गठन ही बाह्य ताकतों से लड़ने वाला एक अक्षुण्ण मिसाइल है ।देश की गरिमा उसके अप्रतिम सौन्दर्य के साथ - साथ मानवीय क्षमताओं से पूर्ण उस सम्पदा का परिणाम है जो पत्थर को भी हीरा बना दे और सूरज को भी मुट्ठी में क़ैद कर ले ।
आंतरिक एकता देश की आत्मा है स्वतंत्रता की ६६ वीं वर्षगाँठ मनाते समय उन चुनौतियों को भी याद रखना है जो समय - समय पर हमारी परेशानियों का सबब बनतीं हैं ,मसलन कश्मीर में पाकिस्तानियों की दखलंदाजी ,चीनी सैनिकों का उपद्रव ,झारखण्ड के नक्सालियों का आतंक ,तेलंगाना राज्य की मांग और प्राकृतिक जलप्लाव से उभरा संकट ।आर्थिक अस्थिरता और मुद्रा- स्फीति भी बड़ी समस्या है ।देश्वासी और प्रशासन समस्याओं से वाकिफ हैं और उनके निदान के लिए प्रयत्नशील भी ।आज का दिन वीर सेनानियों के बलिदानों को याद करने का है ।कुछ देर के लिए समस्याओं को भूल कर उन वीर सेनानियों को हम नमन करते हैं जिन्होंने सरफरोशी की तमन्ना का प्रण किया और आने वाली पीढ़ी को स्वतंत्र राष्ट्र का उपहार दिया। अब तो प्रण हमें करना है ,"ए जननी जन्मभूमि ,सेवा तेरी करूँगा ,तेरे लिए जिऊँगा ,तेरे लिए मरुंगा ।हर जगह ,हर समय में ध्यान तेरा ही होगा ,निज देश और राष्ट्र का भक्त बना रहूँगा। "
गत वर्षों में देश ने प्रत्येक क्षेत्र में जैसे कृषि ,उद्योग और परमाणु क्षेत्रों में अविश्वसनीय सफलता के आँकड़े दिए हैं पर उन्हें मंजिल नहीं मान लेना चाहिए ।विकास एक सतत प्रक्रिया है जिसमे पूर्ण - विराम के लिए कोई जगह नहीं है ।राष्ट्र - हित के लिए चौकी पर तैनात माँ के वीर लाल अपना बलिदान देते रहते हैं। वे सजग प्रहरी हैं इसलिए हम सुख की नींद सोते हैं ।उनकी तरह निःस्वार्थ भाव से अपने - अपने कार्य - क्षेत्र में हमें आगे बढ़ना है ।हमारा अखंड और खुशहाल भारत हमारे सम्मिलित प्रयासों का ही प्रतिफल है। रोबर्ट फ्रॉस्ट की पंक्तियाँ हर युग में प्रेरणा स्रोत हैं ,"कठिन सघन वन और अँधेरी ,मूक निमंगम छलना है ,अरे अभी विश्राम कहाँ ?,बहुत दूर हमें चलना है। बहुत दूर हमें चलना है। "
स्वतंत्रता का सुख क्या होता है ?यह उससे पूछो जो वर्षों से काल - कोठरी में बंद है या फिर पिंजरे में बंद पक्षी जिसके पंख हैं पर परवाज़ नहीं । वर्षों से गुलामी की जंजीर में जकड़े भारत देश के लिए स्वतंत्रता उस उगते सूरज के समान थी जिसने कभी अस्त होना नहीं जाना ।आजादी के बाद का दौर अनेक समस्याओं से पूर्ण था लेकिन स्वतंत्रता का जोश उन सब के निवारण के लिए पर्याप्त था ।एक अखंड भारत का निर्माण जिसमे भाषा - भूषा ,और ऊँच - नीच के भेदभाव का कोई स्थान नहीं था। नेहरु ,गाँधी ,पटेल और अंबेडकर के साथ - साथ इनके समकक्ष दूसरे सेनानियों और नेताओं के प्रयास से स्वतंत्र भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न राष्ट्र में तब्दील हुआ ।संसार के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश की संरचना अद्वितीय तो थी ही ,अब उसकी राष्ट्रीय एकता भी दूसरों के लिए मिसाल बन गयी ।ईद - दीवाली ,हिन्दू - सिक्ख और चर्च - मंदिर में कोई अंतर नहीं ।यह मज़बूत गठन ही बाह्य ताकतों से लड़ने वाला एक अक्षुण्ण मिसाइल है ।देश की गरिमा उसके अप्रतिम सौन्दर्य के साथ - साथ मानवीय क्षमताओं से पूर्ण उस सम्पदा का परिणाम है जो पत्थर को भी हीरा बना दे और सूरज को भी मुट्ठी में क़ैद कर ले ।
आंतरिक एकता देश की आत्मा है स्वतंत्रता की ६६ वीं वर्षगाँठ मनाते समय उन चुनौतियों को भी याद रखना है जो समय - समय पर हमारी परेशानियों का सबब बनतीं हैं ,मसलन कश्मीर में पाकिस्तानियों की दखलंदाजी ,चीनी सैनिकों का उपद्रव ,झारखण्ड के नक्सालियों का आतंक ,तेलंगाना राज्य की मांग और प्राकृतिक जलप्लाव से उभरा संकट ।आर्थिक अस्थिरता और मुद्रा- स्फीति भी बड़ी समस्या है ।देश्वासी और प्रशासन समस्याओं से वाकिफ हैं और उनके निदान के लिए प्रयत्नशील भी ।आज का दिन वीर सेनानियों के बलिदानों को याद करने का है ।कुछ देर के लिए समस्याओं को भूल कर उन वीर सेनानियों को हम नमन करते हैं जिन्होंने सरफरोशी की तमन्ना का प्रण किया और आने वाली पीढ़ी को स्वतंत्र राष्ट्र का उपहार दिया। अब तो प्रण हमें करना है ,"ए जननी जन्मभूमि ,सेवा तेरी करूँगा ,तेरे लिए जिऊँगा ,तेरे लिए मरुंगा ।हर जगह ,हर समय में ध्यान तेरा ही होगा ,निज देश और राष्ट्र का भक्त बना रहूँगा। "
गत वर्षों में देश ने प्रत्येक क्षेत्र में जैसे कृषि ,उद्योग और परमाणु क्षेत्रों में अविश्वसनीय सफलता के आँकड़े दिए हैं पर उन्हें मंजिल नहीं मान लेना चाहिए ।विकास एक सतत प्रक्रिया है जिसमे पूर्ण - विराम के लिए कोई जगह नहीं है ।राष्ट्र - हित के लिए चौकी पर तैनात माँ के वीर लाल अपना बलिदान देते रहते हैं। वे सजग प्रहरी हैं इसलिए हम सुख की नींद सोते हैं ।उनकी तरह निःस्वार्थ भाव से अपने - अपने कार्य - क्षेत्र में हमें आगे बढ़ना है ।हमारा अखंड और खुशहाल भारत हमारे सम्मिलित प्रयासों का ही प्रतिफल है। रोबर्ट फ्रॉस्ट की पंक्तियाँ हर युग में प्रेरणा स्रोत हैं ,"कठिन सघन वन और अँधेरी ,मूक निमंगम छलना है ,अरे अभी विश्राम कहाँ ?,बहुत दूर हमें चलना है। बहुत दूर हमें चलना है। "
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