मन - वीणा की झंकार
चाँद छलकता बूंद - बूंद
आसमां के पैमाने से ।
मिलन देहरी पर ठिठकी
सुन नाम मनुहार के
अलसाई रजनी छिटकी
कचनार के बयार से
खिल उठी प्रकृति प्यारी
मन - वीणा की झंकार से ।
उर सरवर उमड़ पड़ा
नेह के मीठे पावस से
सूना आँगन गूंज पड़ा
प्रीत के मंगल - गान से
ताम्बाई बदन में भोर लजाई
अरुणोदय के बहाने से ।
चिंदी - चिंदी लम्हे
शून्य को भरते
वैरागी मन बहे
जिधर अनुराग बीज झरते
जीने की चाह जाग उठी
एक अशरीरी अहसास से ।
चाँद छलकता बूंद - बूंद
आसमां के पैमाने से ।
मिलन देहरी पर ठिठकी
सुन नाम मनुहार के
अलसाई रजनी छिटकी
कचनार के बयार से
खिल उठी प्रकृति प्यारी
मन - वीणा की झंकार से ।
उर सरवर उमड़ पड़ा
नेह के मीठे पावस से
सूना आँगन गूंज पड़ा
प्रीत के मंगल - गान से
ताम्बाई बदन में भोर लजाई
अरुणोदय के बहाने से ।
चिंदी - चिंदी लम्हे
शून्य को भरते
वैरागी मन बहे
जिधर अनुराग बीज झरते
जीने की चाह जाग उठी
एक अशरीरी अहसास से ।
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