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Saturday, 17 August 2013

 मन - वीणा की झंकार

चाँद छलकता बूंद - बूंद 
आसमां के पैमाने से ।
मिलन देहरी पर ठिठकी 
सुन नाम मनुहार के 
अलसाई रजनी छिटकी 
कचनार के बयार से 
खिल उठी प्रकृति प्यारी
 मन - वीणा की झंकार से ।
उर सरवर  उमड़ पड़ा 
नेह के मीठे पावस से 
सूना आँगन गूंज पड़ा 
प्रीत के मंगल - गान से 
ताम्बाई बदन में भोर लजाई 
अरुणोदय के बहाने से ।
चिंदी - चिंदी लम्हे 
शून्य को भरते 
वैरागी मन बहे 
जिधर अनुराग बीज झरते 
जीने की चाह  जाग उठी 
एक अशरीरी अहसास से ।

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