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Monday, 1 September 2014

मैंने लिख दिया प्रेम
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मैंने लिख दिया प्रेम
हवाओं के तरन्नुम में
आँखों की नमी सोख कर
इठला उठी मेघमाला।

मैंने लिख दिया प्रेम
डाल - डाल और पात - पात पर
अब न दावानल रहा ,न पतझड़
बरस उठा सावन।

वह अवर्णित भावों वाला प्रेम
गज़ब का तिलस्मी और
अपूर्व तेजस्वी है।
 समुद्र सा ज्वार इसमें
हवाओं का भार इसमें
परिंदों  का संगीत थामे
जिजीविषा का पर्याय
प्रेम अलौकिक है।

मैंने लिख दिया प्रेम
ब्रह्माण्ड के एक - एक अणु पर
क्षिति ,जल ,पावक, अम्बर, वायु
सिमट गए एक देह में ,और
मेरी सम्पूर्ण चेतना
यायावरी कल्पनाओं में विचर  
कोरे कागज़ पर उतर गयी
 मैंने लिख दिया प्रेम
उसी कागज़ पर
शब्द गीत बन गए। 

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