विदाई
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रजनीगंधा के सेज
द्वार पर वंदनवार
मेहमानों की आवाजाही
रिश्तेदारों की बधाइयाँ
और माँ के काम
सब कुछ तो कल की भांति हैं।
पर ,नहीं है महमह सुगंध
और वंदनवार की चमक
मेहमानों में जाने की जल्दी है।
बधाइयों में महज दिलासा
और औपचारिकता की खानापूर्ति है।
माँ और पिताजी की रोज़ की बकझक
मौन संवाद में बदल चुकी है।
इंतज़ामकर्ताओं का हिसाब करते हुए
दोनों बीच - बीच में कोरों पर जमा
नमक झाड़ लेते हैं।
पिता के चेहरे पर आज
शिकन नहीं ,सुस्ती है।
काम यथावत चल रहा है
फिर भी एक वीरानी है ,उदासी है
आँगन में ,बगिए में ,घर में।
कल तक सब की चिंता बनी हुई बेटी
आज विदा हो गयी है।
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रजनीगंधा के सेज
द्वार पर वंदनवार
मेहमानों की आवाजाही
रिश्तेदारों की बधाइयाँ
और माँ के काम
सब कुछ तो कल की भांति हैं।
पर ,नहीं है महमह सुगंध
और वंदनवार की चमक
मेहमानों में जाने की जल्दी है।
बधाइयों में महज दिलासा
और औपचारिकता की खानापूर्ति है।
माँ और पिताजी की रोज़ की बकझक
मौन संवाद में बदल चुकी है।
इंतज़ामकर्ताओं का हिसाब करते हुए
दोनों बीच - बीच में कोरों पर जमा
नमक झाड़ लेते हैं।
पिता के चेहरे पर आज
शिकन नहीं ,सुस्ती है।
काम यथावत चल रहा है
फिर भी एक वीरानी है ,उदासी है
आँगन में ,बगिए में ,घर में।
कल तक सब की चिंता बनी हुई बेटी
आज विदा हो गयी है।
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