माँ
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बहुत कोशिश की
तुम्हें शब्दों में ढाल
परिभाषित करूँ
अनेक विशेषणों में अलंकृत कर
असंख्य संज्ञाओं का पर्याय दूँ।
पर फिर भी कागज़ खाली
रह जाता है।
माँ ,तुमने सुख निर्बाध रूप से बाँटा
और दुःख का सागर स्वयं में ज़ज़्ब कर लिया
यूँ तो तुम कभी अपने लिए खुश नहीं हुई
या तुमने महसूस ही नहीं किया कि
पति और बच्चों से इतर तुम्हारा वज़ूद है।
तुम्हारी बीमारियों का कष्ट
मैंने भी जीया है माँ
और तुम्हारी ख़ुशी के आँसू
मैंने भी पीया है।
जानती हो क्या पाया ?
तुम्हारे दर्द के दिनों में
पंछी गाते नहीं थे
गुलमोहर झड़ जाते थे
सारी प्रकृति उदास हो जाती थी।
जिस दिन तुम अपने बच्चों के
संवरते भविष्य को देख खुश होती
मेरे पोर - पोर अमलतासी हो जाते।
तुम्हारी चमकती आँखों और
खिलखिलाती हँसी में सूरज की उष्मा
होती है.. हमें ज़िंदा रखने के लिए।
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बहुत कोशिश की
तुम्हें शब्दों में ढाल
परिभाषित करूँ
अनेक विशेषणों में अलंकृत कर
असंख्य संज्ञाओं का पर्याय दूँ।
पर फिर भी कागज़ खाली
रह जाता है।
माँ ,तुमने सुख निर्बाध रूप से बाँटा
और दुःख का सागर स्वयं में ज़ज़्ब कर लिया
यूँ तो तुम कभी अपने लिए खुश नहीं हुई
या तुमने महसूस ही नहीं किया कि
पति और बच्चों से इतर तुम्हारा वज़ूद है।
तुम्हारी बीमारियों का कष्ट
मैंने भी जीया है माँ
और तुम्हारी ख़ुशी के आँसू
मैंने भी पीया है।
जानती हो क्या पाया ?
तुम्हारे दर्द के दिनों में
पंछी गाते नहीं थे
गुलमोहर झड़ जाते थे
सारी प्रकृति उदास हो जाती थी।
जिस दिन तुम अपने बच्चों के
संवरते भविष्य को देख खुश होती
मेरे पोर - पोर अमलतासी हो जाते।
तुम्हारी चमकती आँखों और
खिलखिलाती हँसी में सूरज की उष्मा
होती है.. हमें ज़िंदा रखने के लिए।
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