इस ब्लॉग से मेरी अनुमति के बिना

कोई भी रचना कहीं पर भी प्रकाशित न करें।

Friday, 22 March 2013


     तुम बन जाओ मोहना


हवाओं की मध्यम-मध्यम तान 
विहगों ने छेड़ा सुरमयी गान 
दूर प्रवाहिणी कर रही शोर
गुलाबी किरणों में लजा रही भोर
प्रणय काल बार - बार नहीं आता 
मैं बन जाऊं गीत ,तुम बन जाओ प्रगाता । 
कमलिनी बिखेरती खिली - खिली मुस्कान 
खो रहे हैं होश ,भ्रमर कर रसपान 
हिमाद्री पिघल रहा किरणों की गर्मी से 
दो दिल मिल रहे साँसों की नरमी से 
क्षितिज पर धरा - गगन मिल रहे चुपचुप 
मैं बन जाऊं पुष्प ,तुम बन जाओ मधुप ।
रजनी शरमा रही सितारों के पट से 
चाँद भी खूब रिझाता बादलों की ओट से 
चांदनी पिघलती रही चाँद निकला अंक से 
कैसी है यह अगन बुझती नहीं सालोंसाल से 
अलगाव का दर्द विरहगीत में है ढलता 
मैं बन जाऊं शब्द ,तुम बन जाओ रचयिता ।
यमुना के तीर पर बरगद की छाँव हो 
गोपियों संग रास रचाता प्रेम का गाँव हो 
अधरों से लगा लो प्रिय वंशी बना कर 
नैनों में ही चाहे सजा लो अंजन बना कर 
मनमयूर नाच उठे सुन मेघ की गर्जना 
मैं बन जाऊं राधा ,तुम बन जाओ मोहना ।

1 comment:

  1. बहुत सराहनीय प्रस्तुति.बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !

    ले के हाथ हाथों में, दिल से दिल मिला लो आज
    यारों कब मिले मौका अब छोड़ों ना कि होली है.

    मौसम आज रंगों का , छायी अब खुमारी है
    चलों सब एक रंग में हो कि आयी आज होली है

    ReplyDelete