कोई फाग रंग चढ़ा रहा
वसंत का आगमन क्षणिक
सुख का आवरण चढ़ा गया
चंचल मन बेकाबू कर
वासंती बयार बहा गया ।
कोमल किसलय खिलते बाग़ में
कोमल स्वप्न दिखा गया
मन के आँगन में दीप जलते
कोई प्रेम मधुर छलका गया ।
पलाश टहक रहा शीर्ष पर
अमलतास मनोरम खिल रहा
सरसों गिरती मदपान कर
कोई फाग रंग चढ़ा रहा ।
तन पे चढ़े न कोई रंग भले
मतवाला मन गीला होता रहा
कोयल विकल छेड़ती कूक
बौर आम का तड़पाता रहा ।
शीतोष्ण का मिलन काल यह
कण - कण में प्रीत छलकाता रहा
नवजीवन का प्रणेता बन
आशा के बीज बोता रहा ।
वाह ....फागुन आयो रे
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