मुझे थाम लेना ।
पतझड़ सी वीरानगी
नस - नस में भर जाती
नवसृजन की आस है तुमसे
तुम वसंत बन जाना ।
घने बादलों से जब -जब
सूरज सुनहरा ढंकता है
विकल मन बारम्बार पुकारता
तुम संबल बन जाना ।
दुबिया पर पड़ी
ओस की निरह बूंद ही सही
आत्मसात करने मुझ को
तुम दिवास्पति बन जाना ।
जीवन राग सुरीला
शब्दों की लड़ियाँ गर तुम्हे पिरोये
मैं रागिनी बावरी सी गुनगुनाऊं
वैसा गीत बन जाना ।
अटूट बंधन ,अमर प्रेम हमारा
जीवन साथी हम रिश्ता जन्मों का
शिखा बन सुबहो शाम जलूं
तुम मेरे दीप बन जाना ।
तुम काया मैं साया
तुम धूप मैं ताप
मैं बहती धारा
तुम कलकल निनाद बन जाना ।
बिन तुहारे मेरा वजूद नहीं
तुम हो तो मैं हूँ
रोज़मर्रा की बेशुमार बातों में
यह बात भूल न जाना ।
जीवन के झंझावात में
जो घिर जाऊं अनायास
पास आकर मेरे
तुम मुझे थाम लेना ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच-1198 पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
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होली तो अब हो ली...! लेकिन शुभकामनाएँ तो बनती ही हैं।
इसलिए होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!