याद आते हैं
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साल दर साल बीत गए
घर - आँगन सब छूट गए
राग नए ,रंग नए
नव परिवेश में ढल गए।
याद आते हैं मस्ती के मेले
ताल - तलैया औ' सावन के झूले
कच्ची उम्र की पक्की कसमें न भूले
खट्टे - मीठे वो शिकवे - गिले।
हाथ बढ़े जब आसमां छूने
मन में उत्साह भरे दूने
सूरज की तपिश तब जाना मैंने
तेवर हवा का पहचाना मैंने।
अपना नहीं है कुछ भी यहां
तेरे - मेरे में बंटा है जहां
रुत शहर की कभी भाई कहाँ
न शीतल छाँव न परिंदे जहाँ।
आँगन में उतरती धूप न भूले
बूँदों की थाप पर नर्तन न भूले
जार - जार रोए थे मिल कर गले
आज के बिछुड़े जाने कब मिले।
अब तो हम प्रवासी पंछी भए
मौसम संग भी लौट न पाए
सुख के भंवर में उलझते जाएँ
बरसाती यादों में बस बह जाएँ।
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साल दर साल बीत गए
घर - आँगन सब छूट गए
राग नए ,रंग नए
नव परिवेश में ढल गए।
याद आते हैं मस्ती के मेले
ताल - तलैया औ' सावन के झूले
कच्ची उम्र की पक्की कसमें न भूले
खट्टे - मीठे वो शिकवे - गिले।
हाथ बढ़े जब आसमां छूने
मन में उत्साह भरे दूने
सूरज की तपिश तब जाना मैंने
तेवर हवा का पहचाना मैंने।
अपना नहीं है कुछ भी यहां
तेरे - मेरे में बंटा है जहां
रुत शहर की कभी भाई कहाँ
न शीतल छाँव न परिंदे जहाँ।
आँगन में उतरती धूप न भूले
बूँदों की थाप पर नर्तन न भूले
जार - जार रोए थे मिल कर गले
आज के बिछुड़े जाने कब मिले।
अब तो हम प्रवासी पंछी भए
मौसम संग भी लौट न पाए
सुख के भंवर में उलझते जाएँ
बरसाती यादों में बस बह जाएँ।
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