कभी फुर्सत में आना
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कभी फुर्सत में आना
मंदिर के चौबारे में बैठ
अपनी- अपनी ज़िन्दगी बतियाएंगे
छोटी - छोटी खुशियाँ बाँटेंगे
अपने वर्तमान की खूबियाँ
बार - बार जतलाएँगे
जैसे ही तुम अतीत कुरेदोगे कि
इस खम्बे के पीछे की
लुका - छिपी याद है ?
मैं विषय - वस्तु बदल कर
शब्दों के जाल में तुम्हें फांस लूँगी
कहीं वो बीता पल
मेरे वर्तमान पर हावी न हो जाए
और ,जब उठने की बारी आएगी
तब एक नहीं ,अनेक बार दुहराएंगे
"अच्छा ,अब चलते हैं "
पता नहीं कौन किससे इज़ाज़त
माँगता है ?
फिर ,एक गहरी चुप्पी के साथ
अपनी - अपनी राह पे चल पड़ेंगे
एक अनकहा संवाद आँखों में लिए
बार - बार मुड़कर देखेंगे
यह अहसास देते हुए कि
तुम अब भी याद आते हो
मेरा अतीत ,मेरे पास ठहरा हुआ है।
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कभी फुर्सत में आना
मंदिर के चौबारे में बैठ
अपनी- अपनी ज़िन्दगी बतियाएंगे
छोटी - छोटी खुशियाँ बाँटेंगे
अपने वर्तमान की खूबियाँ
बार - बार जतलाएँगे
जैसे ही तुम अतीत कुरेदोगे कि
इस खम्बे के पीछे की
लुका - छिपी याद है ?
मैं विषय - वस्तु बदल कर
शब्दों के जाल में तुम्हें फांस लूँगी
कहीं वो बीता पल
मेरे वर्तमान पर हावी न हो जाए
और ,जब उठने की बारी आएगी
तब एक नहीं ,अनेक बार दुहराएंगे
"अच्छा ,अब चलते हैं "
पता नहीं कौन किससे इज़ाज़त
माँगता है ?
फिर ,एक गहरी चुप्पी के साथ
अपनी - अपनी राह पे चल पड़ेंगे
एक अनकहा संवाद आँखों में लिए
बार - बार मुड़कर देखेंगे
यह अहसास देते हुए कि
तुम अब भी याद आते हो
मेरा अतीत ,मेरे पास ठहरा हुआ है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-07-2014) को "मैं भी जागा, तुम भी जागो" {चर्चामंच - 1666} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'