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Thursday 3 December 2015

क्या शुबहा  क्या संशय
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बरस रही हैं आँखें आज
क्या सावन क्या भादो आज।
टूट रहा यादों का सैलाब
कसमें और वादों का मेहराब
छूटे सो ,जुड़ कर भी जुड़े नहीं
इस शाम का हुआ सवेरा नहींशूभा
भर गया मन ,रीता चितवन
क्या उल्लास ,क्या उन्माद आज ।
गाता नहीं वसंत भी गीत अब
उर – वीणा में सजते नहीं संगीत अब
इक तुम्हारे मिलन की आस में
बाँधा है धड़कनों को सांस में
ढलते नहीं गीतों में शब्द प्रिय
क्या राग ,क्या विराग आज ।
टूटा नहीं है हमारा मन – अनुबंध
मौसमों संग आती है पहचानी सी गंध
यही यथार्थ है थामे जीवन की डोर
हम हैं बसे तुम्हारे नयनों की कोर
भाव छटा कभी बिखरा देते,फिर
क्या शुबहा ,क्या संशय आज ।