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Monday 20 June 2016

मेघ उतरता है
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पतझड़ सी नीरवता से जब
मन भर जाता है
मेघ उतरता है नैनों में
आसमान रीत जाता है।

वितथ जीवन का तथ्य
मैं अकिंचन क्या जानूं
दिन - रात की आपाधापी में
जीवन - संगीत जाता है।

आजमाती है ये दुनिया
बिखरा के कांटे पथ में
ये तो मेरा जज़्बा है जो
बन मीत जाता है।

जलाया है दहलीज पे
एक चराग तेरे नाम का
तम की गलियों से अब कौन
भयभीत जाता है।

हो आँखों के नीर तुम
दुःख में और सुख में भी
उर - वीणा के तार छेड़
लिखा प्रीत जाता है।

मिज़ाजे मौसम की मानिंद
बदलते हैं इंसां भी नित
संग दो पल की आरज़ू में
बरस बीत जाता है।

शज़र हूँ तेरे चमन की पर
चहकते नहीं परिंदे कभी
मन की दरीचों से पिघल
नहीं शीत जाता है।

दम्भ के छद्म घेरे में 
विचरते  प्रस्तर प्राण हैं 
साँसों की होड़ लगा कौन
ताउम्र जीत जाता है।

गहन कुहरा छाता है जब
दुःख संत्रास घूटन का
तुम्हारी यादों के आफ़ताब से

बन अतीत जाता है।