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Monday 29 October 2012


     तू ही बता ज़िन्दगी 

घड़ी की रफ़्तार से चलती ज़िन्दगी
कभी -कभी उससे भी आगे निकलती हुई 
कोई तो बता दे यह भाग - दौड़ 
आखिर किसके लिए है ?
जब इसे भोगने का हमारे पास वक़्त नहीं ।
कितने बेबस हैं हम ,जिस ख़ुशी के लिए 
दिन - रात एक करते हैं 
उसे गुनगुनाने के लिए तरसते हैं ।
रिश्तों की परिभाषा खोजो तो 
दिल नहीं ,किताबों को पलटते हैं ।
अहसासों की गर्माहट तो कब की ठंडी हो गयी 
अब अस्थि कलश उठाने का भी वक़्त  नहीं ।
दिली अरमानों का गला घोंट कर 
परेशानियों का अंबार लगा लिया 
लाचारी का आलम ऐसा कि 
रोने के लिए भी कंधा तलाशते हैं ।
माँ की आँचल में नाक पोंछना याद है 
लोरी की गुनगुनाहट याद है 
याद नहीं तो बस वो सूरत 
जिसकी झुर्रियों में अपना बचपन दीखता है ।
तृषा की जाल में फड़फड़ाता प्राण 
खुली आँखों से सोता है 
स्व से स्व को जुदा करके 
ज़िंदा लाश होकर भी अकड़ता है ।
तू ही बता ज़िन्दगी 
और क्या - क्या दूँ तुम्हें
तुम्हें जीने की आरज़ू में 
पल -पल हम मरते हैं ।

Thursday 18 October 2012


  बिन डोर के 

कुछ लोग उतर जाते हैं दिल में 
बिन आहट ,बिन दस्तक के 
जैसे हो प्रारब्ध का कोई रिश्ता 
खींचे चले आते हैं बिन डोर के ।

सुषुप्त थीं अहसासों की गलियाँ
झकझोर दिया जादुई तरन्नुम में 
धड़कने लगीं थमती हुईं साँसे 
यह क्या ग़ज़ब किया पल भर में ।

न देखा, न जाना गहराई से ,पर 
आवाज़ की कशिश उनकी ऐसी 
कि लोकोलाज छोड़ उन तक 
पहुँच जाती पतझर की पत्ती सी ।

अब देखो उनके जुल्मो सितम 
कहते  हैं उन्हें भूल जाओ 
अग्नि परीक्षा कहाँ चाहा मैंने कि
झुलस कर तुम घायल हो जाओ ।

आहत कर मुझे तुष्टि पाते हो 
तुम अपने अहम् की
यह भी नायाब तरीका है तुम्हारा 
मुझे अपने पास लाने की ।

Monday 8 October 2012


लघु कथा 
   
                                                      हमारी धरोहर 




साहिबाबाद की तंग गलियाँ जहाँ चूड़ियों का कारोबार बड़े पैमाने पर होता था ,हमेशा ही मेरे आकर्षण का केंद्र रही है ।इस बार बहुत दिनों बाद वहाँ जाना  हुआ ।भाई - भाभी ने तो जैसे रिश्तेदारी को विसर्जित ही कर दिया था ,पर कुछ दफ्तर के काम से वहाँ का टूर बन गया था ।यह डर था कि अगर पतिदेव गए और उचित मेहमान नवाज़ी न की गयी तो फिर से एक खटास ताउम्र रह जायेगी ।इसलिए मैंने अकेले ही जाने का फैसला किया ।अपने अपमान का घूँट पी लूँगी।
                                   दरवाज़ा खोलते ही भाई ने स्वागत किया । "आ जाओ ,बहुत दिनों बाद 
आयी ।"भाभी करीब बीस मिनट बाद अपने बेडरूम से निकल कर एक फीकी मुस्कान बिखेरती हुई रसोई की ओर चली गयी ।यह बात तो कब से जाहिर हो गयी थी कि वह भाई जो मेरी कहानियों का आनंद लिए बिना सोता नहीं था ,उसके लिए रिश्तों की गर्माहट जाने कब की ठंडी हो चुकी थी ।मेरा अपना कमरा माडर्न  बाथरूम में तब्दील हो गया था ।माता - पिता की तस्वीर पर एक मोटी परत धूल की  जमी हुई एक टेबल पर पड़ी थी ।मुझे लगा शायद सफाई के लिए उसे उतारा गया होगा ।
                सुबह उठते ही मैंने चूड़ियों की गलियों में जाने की इच्छा व्यक्त की ।भाभी ने बताया ,"अरी ,अब वो गलियाँ कहाँ,उन्हें तो ध्वस्त कर बहुमंजीलीय  कालोनी में बदल दिया गया है ।"मैं सोचने लगी कि क्या पुरानी धरोहर यूँ ही मिट जायेगी ।हमारी आने वाली पीढ़ियाँ किसी शहर के विकास में सर्वस्व बलिदान देने वाली छोटी - छोटी गलियों और कस्बों के अस्तित्व को शायद किताबों में भी न पढ़ पायें ।
                         तभी बाहर से कबाड़ी वाले की आवाज़ आयी ।मैंने सुना भाभी अपने नौकर को कह रही थीं कि टेबल पर पड़ी सभी सामानों को दे दो ,उन्हें रख कर  बेकार ही घर में कचरा बढ़ता है ।अभी तक तो मैं शहर के पुनर्निर्माण पर स्तब्ध थी और अब माता - पिता की तस्वीर को कचरे में तब्दील होते देख रो पड़ी ।कैसे कोई इतना संवेदनहीन हो सकता है ?क्या इसी  आधुनिकता को विकास कहते हैं ??

Saturday 6 October 2012


लघु कथा

लाल सिगनल 


 लाल सिगनल पर गाड़ियों का काफिला रुकते ही वह दौड़ पड़ती है ।एक हाथ में प्लास्टिक सी बेरंग होती हुई रजनीगंधा की टहनियाँ और दूसरे हाथ से छः महीने की बच्ची को संभालती हुई ।मैंने फूलों को बिन लिए ही पैसे देने चाहे क्योंकि रजनीगंधा कभी नहीं महकी है मेरे दिल में जब से शीतांश से अलग हुई हूँ ।बड़े आत्मविश्वास से वह बोल उठती है ," मैं भीख नहीं मांग रही ,फूल बेच रही हूँ ।"मैंने बड़े बेमन से रजनीगंधा की कुछ टहनियाँ खरीद ली ।उसकी पारखी आँखों ने मेरी बेरुखी भाँप ली ।कहा ,"जहां रजनीगंधा नही महकती ,वह दीवारो -दर नहीं सजती कभी ।भूल जाओ बासी पड़ी यादों को और एक नए जीवन की शुरुवात करो ,दिल के किसी कोने में गुलाब की पंखुड़ियों सी नरम अहसास जगाओ ।मैंने अपनी बदहाली में भी दूसरों का चेहरा पढ़ा है ।"उस अनपढ़ की इस लाख टके की  बात ने सचमुच मेरा जीवन बदल दिया ।अब जब भी लाल सिगनल पर  गाड़ी रूकती है ,वह गुलाब की कलियाँ लेकर दौड़ती हुई आ जाती है ,जाने कितने दिलों को उसने इसकी सुगंध से आबाद किया होगा ।