इस ब्लॉग से मेरी अनुमति के बिना

कोई भी रचना कहीं पर भी प्रकाशित न करें।

Thursday, 13 December 2012


मुहब्बत :एक अहसास ,कई भाव 
         ( १)
मुहब्बत मेघ है 
पानी की बूंद डबडबाती है 
और बिन टपके 
आसमां को झील बना देती है 
वही झील जिसकी परछाई अक्सर 
मेरी आँखों में दिख जाती है ।
                  
           (२)
 मुहब्बत  बारिश है 
एक - एक बूंद हथेलियों से 
टकरा कर गिर जाती है 
उन्हें मुट्ठी में बंद करने की ललक में 
बदन तर - बतर हो जाता है 
पर ,अंजुरी खाली रह जाती है ।

           (३)
मुहब्बत लहर है 
वही उन्माद ,वही जुनून
उठना - गिरना और बिखरना 
फिर भी न बुझती  अगन  
साहिल मिलन की आस में 
दिन -रात संजोती लगन ।

1 comment:

  1. और बिन टपके
    आसमां को झील बना देती है

    उन्हें मुट्ठी में बंद करने की ललक में
    बदन तर - बतर हो जाता है
    पर ,अंजुरी खाली रह जाती है ।

    फिर भी न बुझती अगन
    साहिल मिलन की आस में
    दिन -रात संजोती लगन ।

    waah sabhi shbd chitr sarthak aur purn hain ..badhaaii kavita vikas ji

    ReplyDelete