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Thursday, 11 February 2016

मुनिया के सपने 
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 लगन के दिन  चढ़ चुके हैं 
बगल के हाते से शहनाई की आवाज़ सुन 
मुनिया खोल पड़ती है उस संदूकची को 
रखे थे जिसमे एक लाल गट्ठर में पिता ने 
एक जोड़ी पायल ,बिछुआ और कंगन। 
हर साल फसल पकने के बाद 
एक उम्मीद की किरण फूटती थी 
इस बार उस पर भी लगन चढ़ जाये ,शायद। 
बीतते गए लगन के दिन साल दर साल 
बिसर गए मुनिया के प्रीत के गीत 
परास्त हो गए पिता के सपने 
मौसम की मार और महाजन के क़र्ज़ 
पिता की जान पर भारी पड़ गए। 
पिता ने आत्महत्या कर ली। 
लाल गट्ठर के गहने अब 
मुनिया को चिढ़ाते से लगते 
धीरे - धीरे एक - एक जोड़ी गहने 
क़र्ज़ - भुगतान की भेंट चढ़ गए। 
मुनिया की देह पर हल्दी नहीं चढ़ी 
लाल गट्ठर अब भी संदूकची में है 
पिता के दायित्व का अहसास बन कर 
और ,मुनिया के सपनों की  राख बन कर। ...कॉपीराइट@k.v

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