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Monday 10 October 2016

बना दो या बिगाड़ दो आशियाँ दिल का
हाथ में ये तेरे है ,नहीं काम कुदरत का।
तोड़ दो यह ख़ामोशी ,खफ़गी भी अब
सर ले लिया अपने, इल्ज़ाम मुहब्बत का।
जी करता है बिखर जाऊं खुशबू बन
तोड़ कर बंदिशें तेरी यादों के गिरफ्त का।
बज़्मे जहान में कोई और नहीं जंचता
कुर्बत में तेरे जवाब है हर तोहमत का।
उम्मीदों का दीया जलता है मुसलसल
कभी तो बरसेगा मेघ उसकी रहमत का।.

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