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Monday 10 October 2016

हे जगदम्बे महिषासुर मर्दिनी माँ 
उद्धार करो जग का हे तमहारिनी माँ। 
आतंक है छाया आततायी भष्मासूरों का 
संहार करो वहशियों का हे अष्टभुजंगिनी माँ। 
आह्वान करते हम आद्या ,लक्ष्मी और शारदे का 
शक्ति वैभव और विद्या दो हे वरदायिनी माँ।
मिलती नही कन्या ,रस्म छूटेगा कन्या पूजन का
पहना दो रक्षा कवच गर्भ से ही हे नारायणी माँ।
भयाक्रांत सभी ,मन अधीर देख पीर जग का
साहस संयम भर दो हममें हे कात्यायनी माँ।
होता नही अंत कभी हमारे दुःख - दारिद्रय का
पीयूष पावस में भीग जाएं अब,हे इन्द्राणी माँ।
मिटा दो रिवाज़ नारियों की अग्नि परीक्षा का
आ जाओ धरा पे ,हे विशय विनाशिनी माँ।
खुशियां हों अपार ,आँगन आनंद मंगल का
दे दो मूलमंत्र मानवता का ,हे ओंकारिणी माँ।
तोड़ भरम का मायाजाल,नाश होअंधप्रथाओं का
हर नारी में हो छवि तुम्हारी हे दुर्गेशनंदिनी माँ।....copyright kv

2 comments:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-10-2016) के चर्चा मंच "विजयादशमी की बधायी हो" (चर्चा अंक-2492) पर भी होगी!
    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सामयिक रचना

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