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Friday 10 April 2020

कविता – हम पहरुए इस देश के
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नीली छतरी के नीचे सजता धरती का चितवन
ऋतुओं की सौग़ातों से पलता मनहर ये उपवन ।
पाखी,दरया औ माटी हैं जीवन राग सुनाते
निर्मल तन में निर्मल मन की अनुशंसा करवाते ।
  हम बागवान इस बगिया की फूल न झरने देंगे
  हम पहरुए इस देश के,ध्वज कभी न झुकने देंगे ।
साँसों की सरगम रचते नित त्योहारों के मेले
जीवन की आपाधापी में हैं ख़ुशियों के रेले।
मिथ्या अभिमान का आवरण तजकर आँखें खोलो
इंसानों को इंसानियत की कसौटी पर तौलो ।
   अपरिमित ज्ञान अर्जन का संकल्प न टूटने देंगे   
   हम पहरुए इस देश के,ध्वज कभी न झुकने देंगे ।
अभिनव उत्कर्ष के सोपान पर चढ़ते जाएँगे
आँधी – वर्षा,धूप – खार में भी बढ़ते जाएँगे ।
भाई -  चारा और एकता का ये मिसाल होगा
महादेश में भारत अपना सुंदर विशाल होगा ।
   बाधाओं के आगे हिम्मत कभी न घटने देंगे
   हम पहरुए इस देश के,ध्वज कभी न झुकने देंगे ।
काल के करवट ने जब भी यहाँ विध्वंश रचाया
हमने इकजुट होकर दुश्मनों को बाहर भगाया।
अपनी शुचिता और ईमान के हम रखवाले हैं
दहशतगर्दी का निशां मिटा दें वो मतवाले हैं।
   बारूदों की फ़सलें वतन में कभी न उगने देंगे
  हम पहरुए इस देश के,ध्वज कभी न झुकने देंगे ।
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