देखो बापू आज क्या हो रहा है
हृदय अपना ज़ार – ज़ार रो रहा है ।
विषमताओं की ऊँची है दीवार
असंतोष जहाँ उभरता बार – बार
आतंकवादियों का पसरता पाँव
पकड़ा रहा है बंदूक़ गाँव – गाँव
सच भी अपनी आस्था खो रहा है
विश्वास का हनन सतत हो रहा है ।
क़दम चल पड़े हैं तारों को छूने
आम जन महज़ हैं सपने ही बूने
धर्म – सम्प्रदाय के बीच है खाई
न राम न रहीम ने ही जगह पायी
उपद्रवी बारूदी फ़सल बो रहा है
लाशों पर भी सियासत हो रहा है।
चूर हुए बापू तुम्हारे अरमान
भाग्योदय से पहले ही अवसान
तुम्हें अवतरित फिर से होना होगा
ठूँठी शाख़ों में जां भरना होगा
चहकेगा पाखी अभी सो रहा है
ऐसा हमें अंदेशा हो रहा है।
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