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टैगोर - एक सोच
,एक उत्प्रेरक
कवि ,लेखक और
नाटककार के
विभुषणों से विभूषित
,बहुमुखी प्रतिभा के धनी
रविंद्रनाथ टैगोर का नाम
साहित्य जगत में
स्वर्णाक्षरों में लिखा
जाता है ।विश्व
- पटल पर भारत
की पहचान बनाने
वालों में उनका
नाम अग्रगणी है
।नाटक ,लघु कथा
,उपन्यास ,लेख, पत्र
और यहाँ तक
कि विभिन्न देशों
में भारत का
प्रतिनिधित्व करने में
दिए जाने वाले
अपने भाषणों में
भी उनकी गहरी कलात्मकता
दिखाई पड़ती थी
।
७ मई, १८६१
को कलकत्ता के
जोरासंको में जन्मे
रविन्द्र अपने पितामह
द्वारकानाथ टैगोर से बहुत
प्रभावित रहे ।टैगोर
परिवार क्रांतिकारी विचारधाराओं का
समर्थक था और
रुढ़िवादी परम्पराओं को तोड़ने
में सबसे आगे
।उपनिषद और बुद्ध
के उपदेश
ने उनकी सोच
को आधार दिया
।उन्होंने स्वयं लिखा है
कि उनकी विस्तृत
सोच को परिपक्व
बनाने में भारतीय
रेनेसां ने क्रांतिकारी
प्रभाव डाला ,विशेषकर तीन
धाराओं का प्रत्यक्ष
समन्वय प्रतिबिंबित होता है
- धार्मिक ,साहित्यिक तथा राष्ट्रीय।धार्मिक
प्रवाह को दिशा
प्रदान करने में
राजा राम मोहन
रॉय का प्रभाव
रहा ।बंकिम चन्द्र
चटर्जी ने साहित्यिक
दिशा प्रदान की।बंगाल
के मधुसूदन दत्त
और दीनबंधु मित्र
जो एक स्तम्भ
की भांति साहित्य
को समर्पित थे
,उन्होंने भी उनकी
लेखनी को नियमितता
और प्रगाढ़ता प्रदान
की । राष्ट्रीयता
की भावना ने
भारतीय रेनेसां के जरिये
उनके व्यक्तित्व को
राष्ट्र की मुख्य
धारा से जोड़
दिया ।
बनफूल टैगोर की पहली
रचना थी ।१८
वर्ष की आयु
तक उन्होंने करीबन
७००० छंद पूरे
कर लिए थे
।१९ वीं सदी
के अंत तक
वे एक युवा
कवि के रूप
में अपनी पहचान
बना चुके थे ।चित्रा
,उर्बशी ,चैताली ,मालिनी आदि
शुरुवाती दौर की
रचनाएँ थीं ।जिस
लेखनी ने विश्व
- पटल पर उनकी
पहचान बनाई ,वह
थी गीतांजलि ।१९१२
ईस्वी में गीतों
की अंजलि को
अंग्रेजी में अनुवाद
किया जिसे अंग्रेजी
के प्रख्यात कवि
कीट्स और सी
.ऍफ़ .अन्ड्रेव ने
बेहद पसंद किया
।१९१३ ईस्वी में
इस महान कृति
के लिए उन्हें
नोबल पुरस्कार दिया
गया ।पोस्ट ऑफिस
भी उसी दौरान
लिखी हुई एक
रचना थी जिसमे
टैगोरे की लेखनी
में आये बदलाव
को परिलक्षित किया
जा सकता है
।
कविन्द्र टैगोर ने अपनी
रचनाओं से एक
ऐसे जनसमुदाय का
निर्माण किया जो
कला और लेखन
से देशभक्ति तथा
राष्ट्रीयता का जज़्बा
पैदा करता है
।अमर हैं कविन्द्र
गुरु और अमर
हैं उनकी कृतियाँ
।
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