जी लो आज
आसमां का अंचल
भर कर अमृतकलश
बूंद - बूंद छलकाता है ।
उष्मित कर अंशुमाली
नवांकुर से कोख भर
थिरक -थिरक मुस्काता है ।
प्राणवायु झूमता उल्लसित
भर अंक नवसृजन को
मंद -मंद झुलाता है ।
नव पल्लव ,नव किसलय
नव पुष्पों का श्रृंगार
नित - नित रिझाता है ।
वसुधा का उपवन
भर चारुता चहुँदिश
अंग -अंग सहलाता है ।
दानी ज्ञानी द्रुमदल
शरदगति या कुसुमागम को
ख़ुशी -ख़ुशी अपनाता है ।
और तो और ऋतंभर सा
रचकर दुनिया बेमिशाल
पल -पल सन्देशा देता है
कि जी लो भरपूर आज
वरन आने को पतझड़
इक- इक दिन गिनता है ।
कोमल पल्लव-सी सुन्दर एहसास
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