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Wednesday 9 January 2013


   
  जी लो आज 

आसमां का अंचल 
भर कर अमृतकलश 
बूंद  - बूंद छलकाता है ।
उष्मित कर अंशुमाली 
नवांकुर से कोख भर 
थिरक -थिरक मुस्काता है ।
प्राणवायु झूमता उल्लसित 
भर अंक नवसृजन को 
मंद -मंद झुलाता है ।
नव पल्लव ,नव किसलय 
नव पुष्पों का श्रृंगार 
नित - नित रिझाता है ।
वसुधा का उपवन 
भर चारुता चहुँदिश 
अंग -अंग सहलाता है ।
दानी ज्ञानी द्रुमदल 
शरदगति या कुसुमागम को 
ख़ुशी -ख़ुशी अपनाता है ।
और तो और ऋतंभर सा 
रचकर दुनिया बेमिशाल 
पल -पल सन्देशा देता है 
कि जी लो भरपूर आज 
वरन आने को पतझड़ 
इक- इक दिन गिनता है ।

1 comment:

  1. कोमल पल्लव-सी सुन्दर एहसास

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